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लेखनी कहानी -18-Aug-2025


          भाई-बहन और केंद का पेड़ 

बहुत समय पहले की बात है दूर ऊंचे- ऊंचे पत्थरों तथा घने पेड़ों से घिरे मैदान में एक छोटा सा गांव बसा हुआ है। इस गांव में घरों की संख्या बहुत कम है। एक घर यहां तो दूसरा एक कोश  की दूरी पर बना है। इसी गांव में बुधनी अपने छोटे भाई जीतू के साथ एक मिट्टी के घर में रहती थी।
      ‌‌       बुधनी का इस संसार में अपने भाई जीतू के अलावा कोई नहीं है। उसके माता-पिता का निधन बचपन में ही हो गया था।तब से बुधनी अपने छोटे भाई जीतू का ख्याल एक मां की तरह रख रही है। बुधनी अपने जीवन - यापन के लिए घर के आस - पास के खेतों में फसलें उगाया करती थी । जब वह खेतों से काम करके थके - मांदे घर पहुंचती तो भाई जीतू के चेहरे की हल्की सी मुस्कान और हाथ में पानी का गिलास देख बुधनी अपनी सारी थकान भूल जाती थी। बुधनी के घर के आंगन में  बड़ा सा नीम का एक पेड़ था जिसकी छाया में जीतू दिन भर बैठ कर खेला करता था।
                गर्मी का  मौसम शुरू हो गया था। जंगल में सखुवा के पेड़ों पर कहीं फूल तो कहीं फलियां लटक रही है आम के पेड़ों पर फल लदे हुए थे जंगलों में महुवा और परसा के  फूलों से भीनी - भीनी खुशबू आ रही  है पेड़ों पर बैठी चिड़िया चहचहा रहीं  दूर आम के पेड़ों पर बैठी कोयल मधुर स्वर में बोल रही थी। वहां का वातावरण बहुत ही शांत और सौम्य से भरा हुआ था।
                 एक दिन की बात है कहीं से उड़ कर एक कौवा बुधनी के आंगन में लगे नीम पेड़ पर आ कर बैठ जाता है। कौवा अपने चोंच में एक केंद का फ़ल लेकर आया था वह फल कौवा की चोंच से छुटकर नीचे ज़मीन पर गिर जाता है। पेड़ की छाया में खेल रहे जीतू की नजर उस फल पर जा कर टिक जाती है वह दौड़ कर उस फल को उठा लेता है और पास में आंगन में झाडू लगा रही अपनी दीदी बुधनी से कहता है कि देखो दीदी मुझे क्या मिला है क्या हम इसे खालें बुधनी जीतू को मना करते हुए कहती मत खाओ भैया पता नहीं क्या है। इतना कहकर फिर से झाडू लगाने लग जाती। कुछ क्षण रुकने के बाद जीतू फिर से वही बात दुहराता है। बुधनी जीतू के बातों से परेशान हो कर उसके पास आ जाती है और जीतू से पुछती है कहां दिखाओ क्या है ? इतना कहकर जीतू के हाथ से वह फल लेकर  देखने लगी है पर उसे फल के बारे में  कोई जानकारी नहीं है। बुधनी उत्सुक नजरों से इधर उधर देखने लगी है तभी उसकी नज़र डाली पर बैठा  एक कौवा पर जाती है।
                           कौवे को देख कर बुधनी उसे पूछती है क्या तुमने इस फल को लाया है।इसका नाम क्या है क्या इसे खाते हैं। कौवा बुधनी से कहता है हां इस फल का नाम केंद है इसे खाते हैं। कौवा की बात सुनकर बुधनी फल को बराबर हिस्सों में बांटती है और दोनों भाई -बहन मिलकर खा जाते हैं।फल पके होने के कारण बहुत मिट्टी और स्वादिष्ट  लगा। फल खाकर दोनों भाई - बहन के मन में और अधिक खाने की इच्छा जाग उठती है। दोनों भाई बहन  कौवे से उत्सुक शब्दों में पूछतें हैं कि क्या तुमने केंद का पेड़ देखा है क्या तुम हमें वहां ले चलोगे। कौवा ने हां में  अपनी सिर हिलाया बुधनी ने तुम्बा में (पहले सुखी  लौकी में छेद करके  उसमें पानी डालकर कहीं दूर ले जाते थे) पानी भरी  ली और जीतू का हाथ पकड़ कर केंद  खाने के लिए निकल पड़ती है।आगे   - आगे कौवा रास्ता दिखाते हुए उड़ रहा है कुछ दूर चलने के बाद जीतू और बुधनी कौवे से उत्सुक शब्दों में पूछतें हैं और कितनी दूर है कौवा केंद का पेड़ कौवा केंद का पेड़। कौवा दिलासा भरे शब्दों में जवाब देता सात टुंगरी पार तीनों आपस में बातें करते-करते छः टुंगरी पार कर जाते हैं जीतू  का मन फल  खाने के लिए कब से मचल रहा है वह कौवे से फिर पूछ बैठता है। है कितनी दूर कौवा केंद का पेड़ कौवा हम पहुंचेंगे कब ।
                       कौवा ख़ुशी से उपर उड़ता हुआ वो रहा केंद का पेड़। बुधनी और जीतू दोनों दौड़ कर पेड़ के पास पहुंच जाते हैं । कौवा कुछ फल खाकर वापिस लौट जाता है।बुधनी  पेड़ पर चढ़ जाती और जीतू के लिए केंद तोड़ - तोड़ कर निचे गिरा देती ।दोनों भाई-बहन ने मिलकर खुब फल खाए । फल खाकर जीतू को प्यास लगने लगी वह बुधनी से कहता दीदी प्यास लगी है पानी पीऊंगा दीदी पेड़ के उपर से ही जवाब देती तुंबा से पानी निकल कर पी लो जीतू पानी पीता कम और जमीन पर गिराता अधिक था। ऐसे करते -करते तुंबा का सारा पानी खत्म हो गया। कुछ फल खाकर जीतू फिर से कहता दीदी प्यास लगी है पानी पीऊंगा बुधनी  पेड़ से नीचे उतर जाती है और तुंबा उठा कर देखती है तो उसमें पानी का एक बूंद भी नहीं होता है। गर्मी के दिन होने के कारण आस -पास के नदियों और तालाबों में पानी सुख गया है बुधनी को चिंता सताने लगी कि अब कहां से जीतू के लिए पानी लाऊं वह चिंता में पेड़ के नीचे गाल पर हाथ रख कर बैठ जाती है तभी उसकी नज़र एक गढ़े में जाती है। बुधनी वही गढ़े में जीतू को बैठाते हुए कहने लगी भाई तुम यहीं छुप कर बैठे रहना मैं पानी लेने पास के गांव में जारही हूं। तुम कहीं जाना मत  जीतू डरते हुए हां लेकिन तुम जल्दी आना इतना कहकर पतों में छिप जाता है। बुधनी हाथ में तूंबा पकड़ कर जल्दी - जल्दी चलने लगी। चलते - चलते वह पास के गांव में पहुंच जाती है और एक घर में जाकर पुकारने लगी घर में कोई है घर से एक आदमी बाहर आया बुधनी उस आदमी से अपने भाई के लिए पानी मांगने लगी। पानी के बदले उस आदमी ने बुधनी के सामने एक शर्त रखी कि वह उसे पानी देगा किंतु पानी के बदले    उसे उसके साथ विवाह करनी पड़ेगी। बुधनी वहां से चुपचाप चली गई।वह गांव में जितने भी घरों में जाकर पानी मांगी उसे इसी प्रकार का जवाब मिला। गांव में इधर-उधर  घूम-घूम कर बुधनी बुरी तरह से थक गई थी उसे जोरों की प्यास लगने लगती है ।वह विवश होकर एक घर में जाती है और पानी मांग कर पी लेती है और उसी घर में रह जाती है।
                     धीरे - धीरे दिन ढलने लगी है प्यास के मारे जितू के गल्ले सुखने लगी है वह अपनी दीदी का बेसब्री से इंतजार कर रहा है। तभी जितू देखता है कि सात बंदरों का एक टोली केंद खाने के लिए इधर ही आ रही है। सब बंदर जल्दी -जल्दी  पेड़ पर चढ़ कर फल खाने लग जातें हैं उनमें से एक बंदर बुढ़ा हो गया है और वह पेड़ पर चढ़ नहीं पाता वह नीचे गिरे फलों को उठा कर खा रहा है और अपने साथी बंदरों से केंद गिराने को कहता है।उसके साथी फल को चखते और बुढ़े बंदर के उपर फेंक कर मारते और  जोर - जोर से हंसने  लगते । बुढ़ा बंदर क्रोध से चिल्लाते हुए  इधर-उधर देखने  लगा तभी उसकी नज़र पतों में छिपे खुजलाते हुए जीतू पर जाती है। बुढ़ा बंदर खुश होते हुए अपने साथी बंदरों से कहने लगा मेरे लिए भी फल गिरा दो 
 ना रे मैंने एक चीज  देखी है।साथी बंदरों ने बुढ़ा बंदर को डांटते हुए कहने लगे यदि तुम ने हम से झुठ कहा तो देख लेना।हम तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ेंगे। बुढ़ा बंदर सचमुच मैं झुठ नहीं बोल रहा हूं।यकिन नहीं हो रहा है तो तुम सब नीचे उतर आओ सभी बंदर एकाएक छलांग लगा कर बुढ़े बंदर के नज़दीक पहुंच जाते हैं। बुढ़ा बंदर अपने हाथ से जितू की तरफ इशारा करता है।उन बेरहमी बंदरों ने जितू को गढ़े से निकाल लिए और चीड़  - फाड़ कर खा गए। समय गुजरता गया और वहां बांस का एक पौधा निकाल आया।एक दिन एक जोगी घूमते-घूमते वहां पहुंच गया बांस को देखते ही उसके मन में बांसुरी बनाने की ललक जाग उठी। और उसने एक बांस काट कर अनेकों बांसुरिया बनाई उन बांसुरिया को गांव  - गांव जाकर बजा - बजा कर बेचने लगा। जोगी घूमते-घूमते बुधनी के घर आंगन में पहुंच जाता है। बांस बना जीतू अपनी दीदी को देखते ही पहचान गया और बांसुरी अपने आप गाने लगा टिमपी-टीपीर टीमपी-टीपी र पानी लेने गई दीदी सातो बंदरों ने मिलकर मुझे चिड-फाड कर खाए। बुधनी अपने भाई की आवाज सुनकर ज़ोर -ज़ोर से रोने लगी और कहने लगी क्या करती भैया पानी के बदले मेरे पैरों में बेड़ियां डाल दी गई। मैं तुम्हारे लिए पानी लेकर आना चाहती थी किन्तु मेरे तूंबा को  दुष्टों ने तोड़ दिया पास में खड़ा बुधनी का पति सब सुन रहा था।उसे अपनी गलतियों पर पछतावा हो रहा है उसने अपनी गलतियों को सुधारने के लिए जोगी को एक सूप धान देकर बांसुरी अपने पास रख ली जोगी वहां से निकल कर दूसरे घर में जाकर बांसुरी बजाने  लगा पर अबकी बार बांसुरी में करुणा भरी आवाजें नहीं थी।पर जोगी खुश था कि उसने एक मरे हुए  भाई को उसकी बहन से मिलाया ।

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